काव्य अंजुमन की परम्परा और जाबालिपुरम्
Abstract
आचार्य विनोवा भावे द्वारा अंलकृत संस्कारधानी जबलपुर का इतिहास गौरवमयी गाथाओं से अभिभूत है । वैसे तो जबलपुर चट्टानों का शहर है । शिलाखण्डों को अरबी भाषा में जबल कहा जाता है । इस कारण भी अनुमान लगाया जाता है कि जबल से जबलपुर । डाॅ. महेशचंद्र चैबे के अनुसार जाबालिपत्तन का सर्वप्रथम उल्लेख यशःकर्ण के जबलपुर ताम्रपत्र में मिला है - ‘‘नर्मदा तीर समावासे जाबलिपत्तन पाटिं कंरजा ग्राम’’। डाॅ. विशम्भशरण पाठक ने प्रतिपादित किया है कि ‘‘जबलपुर का नामकरण ‘जाउली’ शब्द से हुआ है जो हूण भाषा में रानी के लिये प्रयुक्त होता है ।’’2 संभवतः जाउली शब्द कालांतर में जाउल और जबल में परिवर्तित हुआ । ‘‘डाॅ. बुद्ध प्रकाश के अनुसार ‘जाउलीपट्टला’’ वर्तमान के लिये प्रयुक्त हुआ है ।’’3 क्रमशः उपरोक्त वक्तव्यों से यह ज्ञात होता है कि जाउली, जाउलीपट्टला, जाबालिपत्तन, क्रमशः जबलपुर बना । लोकमतानुसार जाबालि ऋषि की नगरी जबलपुर कहलाई । जबलपुर (जाबालिपत्तन) ने अंग्रेजों की उच्चारणगत भिन्न के कारण जब्बलपोर नाम भी पाया। बहरहाल जबलपुर वर्तमान में संस्कारधानी के नाम से भी अभिहित किया जाता है।
References
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि महिला कवियित्रियों ने श्रृंगार परक रचनाओं के पाठ को प्रमुखता दी तो पुरूष कवियों, शायरों ने देश प्रेम, समसामयिक और व्यंग्य परक रचनाओं को प्रस्तुत किया । काव्य अंजुमन की परंपरा में जबलपुर का योगदान अविस्मरणीय है । सभी आयोजन देर रात से प्रारंभ होकर भोर तक चलते हैं। जितनी रुचि कवियों की होती है, उतनी ही रुचि दर्शक दीर्घा में भी होती है । हजारों की संख्या में दर्शक इन काव्य अंजुमन का रसास्वादन करते हैं । संस्कारधानी में ये आयोजन महावीर जयंती, होली मिलन समारोह, हिन्दी दिवस आदि के अवसर पर आयोजित किये जाते हैं । कवि सम्मेलन में कहीं-कहीं काव्य की जगह चुटकुलों का प्रयोग हास्य तो पैदा करता है किन्तु कविता से दूर ले जाता है । दर्शक दीर्घा ग़ज़ल, गीत और हास्य सुनना पसंद करती है । आयोजक इन आयोजनों में अच्दी खासी राशि का उपयोग करते है। सरकारी संस्थाएँ हिन्दी दिवस के अवसर पर कवि सम्मेलन का आयोजन करती हैं । जिनका उद्देश्य रसास्वादन और हिन्दी दिवस की औपचारिकता मात्र होती है । खानापूर्ति ही सही सरकारी संस्थाएँ साहित्य से अवगत तो होती हैं।
यथा ये आयोजन साहित्य की विधाओं को मंच प्रदान कर स्थायित्व देने का प्रयास करते हैं । प्रथम साहित्यिक संस्था भानु कवि समाज से लेकर वर्तमान तक समस्त संस्थाएँ अनवरत् क्रियाशील हैं । संभवतः साहित्यिक यज्ञ में आयोजन रूपी आहुतियाँ नया अनुसंधान करें ।
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