हिन्दी : विकास और संभावनाएँ

Authors

  • प्रियम्वदा मित मिश्र (हिन्दी विभाग) रा.दु.वि.वि., जबलपुर

Keywords:

भूमंडलीकरण, राष्ट्रीय, संस्कृतियों, वैश्विक।

Abstract

भूमंडलीकरण के इस दौर में वाकई इस बात को अपनाने की जरूरत है। भूमंडलीकरण और सूचना क्रांति के इस दौर में जहाँ एक ओर सभ्याताओं का संघर्ष बढ़ा है वहीं वह राष्ट्रीय कंपनियों की नीतियों ने भी विकासशील व अविकसित राष्ट्रों की संस्कृतियों पर प्रहार करने की कोशिश की है। सूचना क्रांति व उदारीकरण द्वारा सारे विश्व के सिमट कर एक वैश्विक गांव मंे तब्दील होने की अवधारणा में अपनी संस्कृति, भाषा, मान्यताओं, विविधताओं व संस्कारों को बचाकर रखना सबसे बड़ी जरूरत है।
किसी भी वृक्ष की शाखाएँ जिस तरह से अपने तने, वृक्ष और जड़ों की पहचान नहीं खोती बल्कि वे उसी से बननी, भूलती, फलती हैं। उसी प्रकार विश्व में फैले हुए भारतवासियों और प्रवासी भारतीयों की जीवनशैली और संस्कृति प्र्रेम मंे देखा जा सकता है। चाहे वे किसी भी देश में हों और किसी भी देश के संविधान के तले जीवन यापन कर रहे हों। लेकिन उनके मन मानस और आत्मा के संविधान के अध्याय में भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा साहित्य का ही अभिलेख है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज भी विश्व के भारतवासियों को जीने की संजीवनी शक्ति अपनी संस्कृति हिंदी भाषा और सार्वभौमिक धर्म से ही प्राप्त होती है। वस्तुतः आज हिंदी भाषा ‘वसुदैव कुटुम्ब’ की जननी हो गई है।

References

’चेरैवति’ पत्रिका - संपादक जयराम शुक्ल अरेरा कालोनी भोपाल

’इस्पात’ भाषा भारती -संपादक हीरा वल्लभ शर्मा स्टील अॅथारिटी आॅफ इंडिया लिमिटेड दिल्ली 110092

साक्षात्कार - साहित्य अकादमी भोपाल

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Published

2015-11-30