‘‘हिन्दी भाषा का राष्ट्रीय स्वरूप’’

Authors

  • डाॅ. योगिता रावते अतिथि विद्वान हिन्दी विभाग

Keywords:

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Abstract

हिन्दी के राष्ट्र भाषा स्वरूप को व्यक्त करने के लिये हमें इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित करना होगा कि राष्ट्र भाषा का प्रश्न सदैव जातीय गोरव की अभिव्यक्ति का वादक होता है। हिन्दी की अस्मिता पराधीनता अस्तित्व को बचा पाई है, उन परिस्थितियों में किसी अन्य देश की भाषा के लिये शायद यह संभव न होता। गुलामी का संकट तो कई देशों ने भोगा है, परंतु भारत ऐसा देश है जिसने दोहरी पराधीनता की पीड़ा को झेलकर भी अपने भाषिक वैशिष्ट्य का संरक्षण किया है।
भारतीय भाषाओं में हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो संपूर्ण भारत वर्ष में बोली जाती है। यह एक ऐसी भाषा है, जिसका प्रयोग भारत के लगभग सभी प्रान्तवासी करते है। अब तो विदेशों में भी इस भाषा का चलन प्रारंभ हो गया है। इसका कारण यह है कि हिन्दी भाषा भारत की जन-जन की भाषा रही है।

References

डाॅ. रामप्रकाश, डाॅ. दिनेश कुमार गुप्त, प्रशासनिक एवं कार्यालयीन हिन्दी, पृष्ठ 99

डाॅ. अंबा शंकर नागर, राष्ट्रभाषा हिन्दी और गांधी जी, पृष्ठ 05

वही पृष्ठ 6

हिन्दी के राष्ट्र भाषा स्वरूप को व्यक्त करने के लिये हमें इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित करना होगा कि राष्ट्र भाषा का प्रश्न सदैव जातीय गोरव की अभिव्यक्ति का वादक होता है। हिन्दी की अस्मिता पराधीनता अस्तित्व को बचा पाई हैए उन परिस्थितियों में किसी अन्य देश की भाषा के लिये शायद यह संभव न होता। गुलामी का संकट तो कई देशों ने भोगा हैए परंतु भारत ऐसा देश है जिसने दोहरी पराधीनता की पीड़ा को झेलकर भी अपने भाषिक वैशिष्ट्य का संरक्षण किया है।

Published

2015-10-31