”विश्व व्यापार संगठन तथा भारतीय कृषि एक विश्लेषणात्मक अध्ययन”

Authors

  • कुमारी नेहा विनोद राय शोध छात्रा, वाणिज्य विभाग राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय नागपुर महाराष्ट्र

Keywords:

अहस्तक्षेप, असमानता, समझौते।

Abstract

18वीं षताब्दी के प्रकृतिवादी अर्थषास्त्रियों ने सर्वप्रथम स्वतंत्र व्यापार एवं अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन किया। प्रकृतिवादियों के विचार को एडमस्मिथ, रिकार्डो, मिल जैसे अर्थषास़्ियों ने आगे बढ़ाया। परन्तु औद्योगिक क्रांति, देषों के मध्य आर्थिक असमानता और आर्थिक मंदी आदि कारणों से विष्व में संरक्षणवाद का प्रचार हुआ। परिणाम स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट आई। अतः विष्व व्यापार मंे वृद्धि करना आवष्यक था। द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विकास का माध्यम बनाने के लिए विष्व के अधिकांष राष्ट्रो ने ” प्रषुल्क एवं व्यापार संबंधी सामान्य समझौते (गैट) को सहमति दी। इसका उद्देष्य सदस्य राष्ट्रों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में आने वाली बाधाओं को कम करके स्वतंत्र व्यापार में वृद्धि को प्रोत्साहन देना था, ताकि व्यापार के माध्यम से विकास प्रक्रिया को गति प्रदान की जा सके। इसी गैट की आठवें दौरे (उरूग्वे दौर) की वार्ता के परिणाम स्वरूप विष्व व्यापार संगठन 1 जनवरी 1995 से अस्तित्व में आया। “

References

भारत को विष्व व्यापार संगठन की शर्तो को बारीकी से समझना होगा। इन सब समझौतो और नियमों के अनुरूप ही हमको तय करना होगा कि हम दूसरे देषों को उनके उत्पादों को भारत में बेचने और बाजार देने की सुविधाएं किस रूप में प्रदान करें ताकि हमारे देष के किसान खुषहाल रहे और विकसित देषों की कूटनीति से हम बचे रहे।

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Published

2015-11-30