भारत में जनजातियों का सांस्कृतिक स्वरूप

Authors

  • डाॅं. नितिन सहारिया शासकीय एम.एम. महाविद्यालय कोतमा, जिला-अनूपपुर (म0प्र0)

Keywords:

Abstract

भारत की आदिम जनजातियों को विद्वानों ने अलग-अलग नामों से पुकारा है। प्रसिद्ध नेतृत्वशास्त्री एच.एच. रिजले, लेके, ग्रियर्सन, सोलर्ट, टेलेट्रस, सेनविक, मार्टिन तथा भारतीय समाज सुधारक ठक्कर ने इन्हें आदिवासी शब्द से सम्बोधित किया। हट्टन ने इन्हें ’प्राचीन जनजाति‘ कहा है। ऐल्विन ने बैगा जनजाति को आदिस्वामी कहा है। बेन्स ने वन्य जाति कहा है। सन् 1901 की जनसंख्या रिपोर्ट में उन्हें ’प्रकृतिवादी‘ कहा गया तथा सन् 1911 में उन्हें जनजातीय प्रकृतिवादी अथवा जनजातीय धर्म को मानने वाले लोग कहा गया। सन् 1921 की जनसंख्या रिपोर्ट में उन्हें ’पहाड़ी एवं वन्य जनजातियों‘ का नाम दिया गया। सन् 1931 की जनसंख्या रिपोर्ट में उन्हें ’आदिम जनजाति‘ कहा गया। भारत सरकार अधिनियम, सन् 1935 में जनजातीय जनसंख्या का पिछड़ी जनजातियाँ‘ का नाम दिया गया। सन् 1941 की जनसंख्या रिपोर्ट में उन्हें केवल ’जनजातियां‘ कहा गया। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन में किसी भी देश के मूल निवासियों को ’आदिवासी’ शब्द से सम्बोधित किया है। एम्पीरियल गजेटियर में जनजाति की परिभाषा ’जनजाति परिवारों के एक ऐसे समूह का नाम है, जिसका एक नाम तथा एक बोली हो तथा एक भू-भाग में रहते हैं या उस भाग को अपना मानते हो तथा अपनी जनजाति के भीतर ही विवाह इत्यादि करते हों। ‘लुसीमायर ने इसके अर्थ के संबंध में कहा है कि ’जनजाति समाज संस्कृति वाली आबादी का एक स्वतंत्र राजनीतिक भाग है। बोआम के अनुसार ’जनजाति का अर्थ आर्थिक दृष्टि से ऐसा स्वतंत्र जनसमूह जो एक भाषा बोलता है और बाह्म आक्रमण से सुरक्षा के लिए संगठित होता है। मर्डोक ने जनजाति को इस प्रकार परिभाषित किया है, यह एक सामाजिक समूह है जिसकी एक भाषा होती है तथा भिन्न संस्कृति एवं एक स्वतंत्र राजनैतिक संगठन होता है।

References

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दैनिक भास्कर समाचार पत्र

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Published

2016-06-30

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Articles