जनजातीय समाज में लैंगिक समानता
Keywords:
Abstract
लंैगिक समानता:- लैंगिक समानता का सीधा सरल तात्पर्य यह कि लैंगिक अर्थात् स्त्रीलिंग वह पुल्लिंग तथा समानता में तात्पर्य है कि दोनो लिंगो अर्थात स्त्री व पुरूष में समानता । यदि हम इस लैंगिक समानता शब्द को जाने या इसे जानने कि कोषिष हैं तो उसके पीछे एक सबसे बड़ा कारण यह कि जो हमारा भारतीय समाज है वह पुरूष प्रधान समाज है। आदिकाल से लेकर वर्तमान युग में भी और शायद यह आने वाले समय में भी यह पुरूष प्रधान समाज ही रहेगा। इस पुरूष प्रधान समाज में स्त्री को दोयम दर्जे का स्थान दिया गया हैअर्थात् उसे पुरूष के समान इंसान की जाति न समझते हुये उसे दूसरी जाति का समझकर दोयम दर्जा प्रदान किया गया।इस पुरूष प्रधान समाज के इस कष्ट पूर्ण नीति के विरूद्व स्त्री जाति में एक आक्रोष पीड़ा, वेदना की लहर दौड़ गई। वह अपने मनुष्य होने के अधिकारों को जानकर उन अधिकारों के लिये मांग करने लगी और मांग न पूरी होने का विरोध होने लगा, इन्ही विरोध के परिणामस्वरूप लंैगिक समानता जैसे शब्दो को उदय हुआ जर्मेन ग्रीयर कहती है।
References
सवदू पत्रिका दिंसम्बर
ऋवेद ,1/24/1,101/3
ऋवेद 1/66/3
ओझा रूपनाथ,गढेषनृ पवर्णनम्
सं.जी.व्ही.भावे,ष्लोक 31 पृ.95 96
आदिवासी विकास, उपलब्धियाँ एवं चुनौतियाँ भाग-1, संपादक-एस.एन.चैधरी, पृ-241
आलेख, इन्टरनेट द्वारा प्राप्त-विलुप्त होने की कगार पर बैगा जाति, 13/11/2014
ब्लूम फील्ड-नोट्स आॅन बैगा, 1885, पत्रिका,
छत्तीसगढ़ की आदिम जनजातियाँ-अनिल किषोर सिन्हा, पृ-130
Downloads
Published
Issue
Section
License
Submission Preparation ChecklistSubmission Preparation Checklist
Before proceeding with your submission, please ensure that you have completed the following checklist. All items on the list must have a checkmark before you can submit your manuscript: