रानी दुर्गावती का मुगलों से नर्रई नाले के पास संघर्ष व शहादत
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रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर में हुआ था। इनके पिता का नाम कीरत सिंह था जो चंदेल वंशीय थे।1 गोंड शासक संग्रामशाह के पुत्र युवराज दलपत शाह की राजकुमारी दुर्गावती से विवाह हुआ। दुर्गावती अति सुन्दर थी ओर जैसा कि भविष्य की घटनाओं से सिद्ध हुआ वह उससे भी अधिक महान चरित्र वाली थीं। दुर्गावती में स्त्रियोचित सौन्दर्य और आकर्षण के साथ पुरूषोचित साहस, शौर्य तथा कर्मठता भी थी। आसफ खाँ की गतिविधियों को दृष्टिगत रखते हुए रानी ने जिसने कि अब 5000 सैनिक एकत्र कर लिये थे अपने प्रमुख अधिकारियों की एक परिषद बुलाई तथा उनसे युद्ध प्रारम्भ करने को कहा क्योंकि घाटियों और जंगलों में अधिक समय तक छिपे रहना संभव नहीं था। जो लोग उससे सहमत नहीं थे उन्हें रानी ने जहाँ वे चाहें जाने की अनुमति प्रदान कर दी। रानी दुर्गावती के प्रभावशाली वचनों का वांछित प्रभाव पड़ा और उन अधिकारियों ने भी युद्ध करने का निर्णय लिया। दूसरे दिन उसने सुना कि नजर मुहम्मद के अधीन मुगल सेना ने नरही की ओर जाने वाली घाटी के मुख्य भाग पर कब्जा कर लिया है तथा उसकी हाथी सेना का फौजदार अर्जुनदास बैस घाटी की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो चुका है, वीरता के इस कृत्य से रानी का शौय जाग उठा। यह समाचार सुन रानी ने कवच और शिरस्त्राण धारण किया और एक हाथी पर सवार हो उसने अपने सैनिकों को धीरे-धीरे आगे बढ़ने का आदेश दिया जिससे कि शत्रु घाटी में प्रवेश कर ले और बाद मे वे उन पर सभी ओर से हमला कर उन्हें नष्ट कर सकें। उसका अनुमान सत्य सिद्ध हुआ उसकी छोटी सी सेना विजयी हुई तथा इस मुठभेड़ में 300 मुगल सैनिक मारे गये और शेष सैनिकों को पराक्रमरी गोंड़ सैनिकों ने खदेड़ दिया।References
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