स्त्री विमर्ष रू एक अवलोकन

Authors

  • डाॅ. रानू राठौर सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग माता गुजरी महिला महाविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)

Keywords:

Abstract

स्त्री विमर्श उत्तर आधुनिकता का सर्वाधिक चर्चित साहित्यिक विमर्ष हैं। जिसका प्रमुख आधार बदला हुआ स्त्री जीवन और चिंतन है, जिसने स्त्रियों में स्वतंत्र सोच और पुरूष से बराबरी का भाव पैदा कर दिया है। स्त्री विमर्ष केवल स्त्री की मुक्ति और पुरूष की बराबरी तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे कहीं आगे बढ़कर स्त्री की चेतना, अस्मिता व स्वाभिमान को भी अपने में समेटता है। स्त्री को अपने शरीर अस्तित्व व जीवन पर अधिकार प्रदान कर आत्म निर्णय की ताकत प्रदान करना स्त्री विमर्ष का प्रमुख उदद्ेश्य है।
‘स्त्री विमर्ष को वृहत्तर अर्थों में परिभाषित करना चाहें तो वह घर, परिवार समाज- नीति और राष्ट्रनीति में, नारी की अस्मिता, अधिकार और उन अधिकारों के लिए संघर्ष चेतना से जुडे़ संवाद की संकल्पना हैं। वहाॅं सामाजिक, धार्मिक अंधरूढ़ियों में दबी - पिसी स्त्री की आहे ं- कराहें ही नहीं, बल्कि शोषक व्यवस्था के विरूद्व उसका आक्रोष - विद्रोह भी है, साथ ही स्त्री की गरिमापूर्ण सषक्त छवि गढ़ने की मुहिम भी‘।

References

‘‘स्त्री विमर्ष की अवधारणा और हिंदी साहित्य‘‘- चंद्रकांता ‘आजकल‘ मार्च 2008 में प्रकाषित आलेख

‘‘नारी विमर्ष: लघु कथाओं के संदर्भ में‘‘-डाॅ. मधु संधु

अथर्ववेद - 3.30.11

‘‘नई सहस्त्राब्दि का महिला सषक्तिकरण‘‘ - डाॅ. वीरेन्द्र सिंह यादव (3 भागों में) भाग-2, पृ. 34

‘‘नई सहस्त्राब्दि का महिला सषक्तिकरण‘‘ - डाॅ. वीरेन्द्र सिंह यादव भाग-1, पृ. 25

‘‘स्त्री विमर्ष भारतीय परिपेक्ष्य‘‘-डाॅ. के.एस.मालती, पृ. 153

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Published

2017-07-31

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