आचार्य शिवपूजन सहाय का देेशकाल
Abstract
प्रस्तुत शोधपत्र आचार्य शिवपूजन सहाय के देशकाल का अध्ययन करता है। इस बहाने
हिन्दी साहित्य के इतिहास और उसमें आचार्य शिवपूजन सहाय के देशकाल की परिस्थितियों का
वर्णन किया गया है। आचार्य शिवपूजन सहाय ने 1910 से लेकर 1960 तक हिन्दी साहित्य को
समृद्ध किया है। डॉ.तारकनाथ बाली ने सही लिखा है कि व्यापक दृष्टि से देखने पर ज्ञात होता
है कि छायावादी युग भारत की अस्मिता की खोज का युग रहा है। ऐसे समय में आचार्य
शिवपूजन सहाय जैसे लेखकों की आवश्यकता थी, क्योंकि आचार्यजी को धर्मान्धता पसंद नहीं
थी। उन्होंने सही लिखा था कि राम भक्ति की ओट में सारे देश में जो अत्याचार हो रहे हैं, उनसे
कोई अंजान नहीं है। ऐसे और कई उदाहरण देखे जा सकते हैं, जो उनके यथार्थवादी दृष्टिकोण
के परिचायक हैं।
References
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