महिलाओं में सहयोग के प्रभावों का समाजशास्त्रीय अध्ययन भोपाल जिले के संदर्भ में

Authors

  • उषा ठाकुर

Keywords:

सहजयोग, आत्म साक्षात्कारए कुंडलिनी जागरण, आध्यात्मिक उत्थान

Abstract

सहजयोग एक आंतरिक प्रणाली हैए जो ध्यान धारणा से समझी जा सकती है। जिसके व्यक्ति के प्रयोग से आमूलचूल परिवर्तन किए जा सकते हैंए और निम्न जीवन के निम्न स्तर से उन्नत जीवन की ओर प्रगति की जा सकती है। इसकी संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी हैं। जिन्होंने वर्ष 1970 में जागृति प्राप्त कीए एवं जन.जन को सहज योग का ज्ञान भारत वर्ष एवं विश्व के 95 देशों में संस्थापित किया। सहज योग ध्यान मानव के आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है। सहज योग व्यक्तिगत चेतना की सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति से नैसर्गिक एकाकार होने की शक्ति है। जो कि सभी मानव में रीढ़ की हड्डी में स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में जन्म से ही होती है। जिसे कुंडलिनी शक्ति कहते हैं। इस शक्ति को ध्यान के द्वारा स्वयं की स्वतंत्रता में जागृत किया जाता है। यह शक्ति शरीर में स्थित सात चक्रों को निरंजीत करते हुए सहस्त्रार चक्र पर पहुंचती है। तब यह मानव के उत्थान का मार्ग प्रचलित करती है। आत्म साक्षात्कार पाने के पश्चात मनुष्य जीवन की बनावटी सीमाएं भूल जाता है और परमेश्वरी प्रेम के साम्राज्य का अंश बन जाता है। सहज योग एक ध्यान धारणा की प्रणाली है। जोकि आध्यात्मिकए सामाजिकए भौतिक उत्थान में मानसिक अवसाद में एक कारगर प्रणाली है। इस अनुसंधान में 300 सहज योगी महिलाओं य150 शहरी क्षेत्र व 150 ग्रामीण क्षेत्रद्ध पर कार्य किया जाएगा। इसमें आयु व जाति का कोई बंधन नहीं है। उपरोक्त अनुसंधान की जानकारी प्रश्नावली के माध्यम से प्राप्त की जाएगी। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के सहज योग ध्यान केंद्रों के माध्यम से जानकारी एकत्रित कर सगणना की जाएगी। व्यक्तिगत चर्चा के माध्यम से उनके सामाजिकए आर्थिकए आध्यात्मिक व मानसिक उत्थान व स्वास्थ्य लाभ में जो परिवर्तन आएंगे उनकी जानकारी एकत्रित की जाएगी।

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Published

2021-03-30

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Articles