प्राणमय कोशः-आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक विवेचन
Abstract
प्राणमय कोश आत्मा का द्वितीय आवरण हैै। प्राण जीवन शक्ति एवं सामर्थ्य का प्रतीक है। इस संबंध में भारतीय धर्म ग्रंथो में यह मान्यता है कि स्थूल काया में उसी के अनुरूप एक प्राणश्षरीर रहता है। ’प्राण‘ षब्द की व्युत्पŸिा ‘प्र’ उपसर्ग एवं ‘अन्‘ धातु से होती है, जिसका अर्थ प्राण होता है। ‘प्राण’ षब्द शक्ति वोधक माना गया है। आचार्य शर्मा का मत है कि मनुष्य में जीवन दायिनी शक्ति के रूप में प्राण की सŸाा प्रकट होती है। यहाँ यह प्रष्न उठना स्वाभाविक है कि यह जीवनी शक्ति क्या है ? आचार्य शर्मा के अनुसार यह संकल्प बल है। इस संकल्प बल के जीवन से लेकर प्रगति षीलता तक अनेक रूप है। अंतःकरण की आकांक्षा ही विचार षक्ति एवं क्रिया षक्ति को प्रेरित करती है एवं मार्गदर्षन करती है, किंतु, आकांक्षा के साथ-साथ किसी कार्य को पूर्ण करने का साहस व षक्ति भी होनी चाहिये, यही संकल्प है। संकल्प मे आंकाक्षा, योजना, प्रगति एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु अभीष्ट साहसिकता का घनिष्ठ संबंध है। इस संकल्प तत्व को चेतन का प्राण कहा जा सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी संकल्प के महत्व को एक अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक मानते हुए कहा है-References
श्रीमद् भागवत गीता, 6/24, 6/25
योगचूणामण्युपनिषद्, प्रस्तावना
आचार्य श्रीराम शर्मा, पाँच प्राण पाँच देव, पृष्ठ 31
पूर्ववत्, पृष्ठ 30
प्रष्नोपनिषद्, 2/5
आचार्य श्रीराम शर्मा, पाँच प्राण-पाँच देव, पृष्ठ 63
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Published
2021-09-30
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