उत्तर कोरिया- दक्षिण कोरिया विवाद की पड़ताल पीत सागर की पृष्ठभूमि में
Abstract
कोरिया पूर्वी एषिया का एक प्रायद्वीप है जो मंचूरिया की दक्षिण-पूर्व सीमा से लगता हुआ यलो सी तक विस्तृत है तथा जापान के मुख्य द्वीपो के धुर दक्षिण भाग तक पहुचता है यह प्रायद्वीप वर्षों तक जापान के कब्जे में रहा।।। वर्ष 1910 में कोरिया का विभाजन नहीं हुआ था, उस पर जापानी हुकूमत थी। दूसरे विष्वयुद्ध में जापान हार गया लेकिन कोरिया पर उसकी पकड़ बनी रही। कोरिया को आजाद कराने के उद्देष्य से अमेरिका और सोवियत संघ ने हाथ मिलाया और जापानी सेना से उसे मुक्ति दिलाई। जापानी हुकूमत खत्म हो जाने के बाद कोरिया दो भागों क्रमंषः उत्तरी कोरिया और दक्षिण कारिया में विभक्त हो गया। कोरिया का उत्तरी हिस्सा सोवियत संघ के कब्जे में चला गया जबकि दक्षिणीा हिस्सा अमेरिकी कब्जे में आ गया। अमेरिका और सोवियत संघ (विषेषकर सोवियत संघ) की यह प्रबल इच्छा थी कि कोरिया का दो भागों में विभाजन कदापि उचित नहीं है, बेहतर यह होगा कि यहां एक ही सर्वमान्य सरकार का गठन हो। दुर्भाग्य से सोवियत संघ की यह सद्इच्छा पूरी नहीं हो सकी। कोरिया में वर्ष 1948 में उत्तर कोरिया में अलग सरकार बनी और दक्षिण कोरिया में अलग। उत्तर कोरिया में जो सरकार बनी उसका नेतृत्व कोरियाई कम्युनिस्ट कर रहे थे, जबकि दक्षिणी कोरिया में सिंगमन री के नेतृत्व में अनेक राजनीतिक दलों को साथ लेकर कोरियाई गणराज्य की सरकार बनी। सिंगमन री को कम्युनिस्टों से धृणा थी और उसकी यह प्रबल इच्छा थी कि किसी भी तरह से कम्युनिज्म को बढने से रोका जाना चाहिए। री की इसी इच्छा के चलते उसके उत्तरी कोरिया से बेहतर संबंध नहीं बन पाए और दोनों के बीच झड़पे षुरू हो गई। अमेरिका गुपचुप तरीके से री को उत्तर कोरिया के खिलाफ भडकाता रहा। परिणामतः जून, 1950 में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया दोनों के बीच भीषण युद्ध हो गया। इसी बीच चूकि चीन में जनवादी क्रांति हो चुकी थी और अमेरिका को इस बात का डर बेवजह सता रहा था कि कहीं इस पूरे क्षेत्र को कम्युनिज्म अपने चपेट में न लेले जिससे भविष्य मंे उसकी जो योजनाएं इस क्षेत्र मंे अपना प्रभाव जामने के लिए बनाई गई है, वे अवरूद्व हो। ऐसे में अमेरिका ने अपना असली चरित्र उजागर किया और अपनी फौंजे दक्षिणी कोरिया की मदद के लिए भेज दी। दिखावे के लिए अमेरिकी फौजों के साथ उसके कुछ अन्य मित्रों की फौंजों का भी घालमेंल कर दिया गया लेकिन मुख्य फौजी ताकत अमेरिका की ही थी। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में भी अपना प्रभाव तो ब ना ही लिया था लिहाता उत्तरी कोरिया के रवैये की निंदा भी उसने संयुक्त राष्ट्र से करवा ही ली। दुनिया को बेवकूफ मानते हुए अमेरिका ने कुछ इस तरह का नाटक रचाा जिससे यह लगे कि यह हमला संयुक्त राष्ट्र की सनाऐंल ड़ रही है। अमेरिका के इस नाटक के चलते तीसरे विष्वयुद्ध का खतरा भी मंडराने लगा था क्योकि इससे चीन भी नाराज होकर सक्रिय हो चुका था। और सोवियत संघ भी जो एक सषक्त फौजी ताकत बन चुका था, वह भी कुपित हो उठा। फिर भी सोवयित संघ ने बराबर यही कोषिष की कि यह युद्ध किसी भी रूप में उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया की सरहद के बाहर तक न फैल पाए अन्यथा तीसरे विष्वयुद्ध को होने से कोई नहीं रोक सकता है। तीन सालों तक यह दोनों देष लड़ते रहे और इसमें लाखों नागरिक और सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा मारे गए लोगों में डेढ़ लाख के आस-पास अमेरिकी भी थे। अपार धन और जनहानि के बाद अंततः वर्ष 1953 में दोनों मुल्कों के बीच संधि हुई और युद्ध रूका।।References
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