काव्यलक्षण

Authors

  • कुमारी षिखा झारिया ्योध छान्ना स्ंास्कृत पालि प्राकष्त विभाग रानी दुर्गावती विष्वविद्यालय जबलपुर

Keywords:

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Abstract

काव्यलक्षण के संदर्भ में आचार्य भामह से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक सभी आचार्यों ने अपने ढंग से काव्य का लक्षण किया है। परंतु इस लंबे अंतराल में भी वह एकांगी ही रहा। आचार्य भामह ने ‘शब्दार्थो सहितौ काव्यम्’ कहा है भामह द्वारा प्रस्तुत यही लक्षण उत्तरोत्तर संषोधित एंव परिवर्धित होता हुआ, मम्मट के द्वारा पूर्णता को प्राप्त होता हैै। काव्य की इन परिभाषाओं में आचार्यो की दृष्टियां भिन्न हैं। भामह, वामन, रूद्रट, कुन्तक, आनन्दवर्धन, मम्मट, हेमचन्द्र, वाग्भटादि, विद्यानाथ, तथा भोजदेव जहां ‘शब्दार्थ-समष्टि’ के काव्यत्व पर जोर देते हैं वहीं दण्डी ‘‘षरीरं तावदिष्टार्थव्यवछिन्ना पदावली’’ तथा पण्डितराज शब्दमात्र के काव्य होने पर जोर देते हैै। तीसरा मार्ग है आचार्य विष्वनाथ का। वह शब्द अथवा अर्थ के प्रति स्वारस्य न प्रकट करते हुए रसात्मक वाक्य को ही काव्य मानते हैं।
अर्वाचीन आचार्यांे में अभिराजराजेन्द्र मिश्रजी का काव्यलक्षण पूर्ववर्ती आचार्यों के लक्षणों से अनुदत्त है। आचार्य द्विवेदी भी इसका समर्थन करते हैं। राधाल्लभत्रिपाठी ने काव्य का लक्षण ‘लोकानुकीर्तनं काव्यम्’ के रूप में किया है, जो दार्षनिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। यह लोक स्थाणु या स्थिर नहीं है, अपितु प्रतिक्षण,परिवर्तमान और विकासषील है।

References

अग्निपुराण 337/6 उद्धृत आधुनिक संस्कृत काव्यशास्त्र पृ. 101

संस्कृत अर्वाचीन समीक्षात्मक काव्यषास्त्र पृ. 200

अभिनवकाव्यालंकार सूत्रम् पृ. 1 (1/1/1)

अमरकोष (2/1/6) उद्धृत अभिनवकाव्यालंकार सूत्रम् पृ. 1

अभिनवकाव्यालंकार सूत्रम् पृ. 1/1/2, 1/1/4

नाट्यषास्त्र (29/127) उद्धृत अभिनवकाव्यालंकार सूत्रम् पृ. 2

अभिनवकाव्यालंकार सूत्रम् पृ. 3

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Published

2014-12-31