छत्तीसगढ़ी लोकनृत्यों की परंपरा में पंथी नृत्य

Authors

  • डॉ. श्रीमती गायत्री साहू

Keywords:

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Abstract

लोक गीत के सदृश छत्तीसगढ़ लोक नृत्य कला भी अति प्राचीन है। नृत्यों का विकास लोक-जीवन से ही होता है। नृत्य ही लोक जीवन में भाव-प्रदर्शन का एक मात्र साधन है। जिस प्रकार लोक जीवन निर्बन्ध एवं स्वच्छन्द है, उसी प्रकार लोक नृत्य यहाँ के लोक-जीवन में एक साम्य है। छत्तीसगढ़ के नृत्य अपनी शैली विशेष का अनुशरण करते हुए परम्परा से चले आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ी नृत्य आदिम जातीय परम्परा के अनुसार वृत्ताकार अथवा गोल चक्कर के होते हैं। पहिले दाहिने पैर उठते हैं, फिर बायें पैर तत्काल साथ-साथ बाजे या ताल के बोल या स्वर पर नृत्य का रूप बनता है। ताल की भिन्नता से नृत्य का भेद होता है। 1.

References

छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य का अध्ययन- दयाषंकर षुक्ल, पृश्ठ -117,118

छत्तीसगढ़ के सामाजिक जीवन पर गुरू घासीदास का प्रभाव डॉ. पदमा डड़सेना, पृश्ठ-98

छत्तीसगढ़ के पंथी गीत और बाबा गुरू घासीदास-श्रीमती सुप्रभा झा,पृश्ठ-31

वहीं, पृश्ठ-62,63

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Published

2018-11-30