वर्तमान समय के विद्यार्थियों के लिए बौद्ध दर्शन में निहित अष्टांगिक मार्ग की प्रासंगिकता
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Abstract
आज जब हम शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक विकास की बात करते हैं तो उसकी सीमा में बच्चों को समाज की भाषा, रहन-सहन की विधि, रीति रिवाज व आचार विचार सिखाकर उन्हें समाज में समायोजन करने योग्य बनाना उन्हें समाज की अच्छाई बुराई के प्रति संवेदनशील बनाना और समाज की बुराईयों को दूर करने तथा उसमें नई-नई अच्छाईयों को लाने के लिए नेतृत्व शक्ति का विकास करना सब कुछ आता है। इन सबके विकास के लिए हम विद्यालयों में सामूहिक कार्य की विधियों का प्रयोग करते हैं। बच्चे विद्यालय में समाज की भाषा व आचार विचार सीखकर विद्यालयी समाज में समायोजन करते हैं और सब प्रेम, सहानुभूति और सहयोग से विभिन्न कार्यो का संपादन करते हैं वे ही समूह विशेषों का नेतृत्व करते है और इस प्रकार उनका सच्चे अर्थो में सामाजिक विकास होता है। परन्तु वर्तमान समय में विद्यार्थी समाज, परिवार, विद्यालय एवं अपने साथियों के साथ समायोजन नहीं कर पा रहा है। जबकि बौद्धकाल में विद्यार्थी सभी सुख सुविधाओं से अलग रहकर भी अपने साथियों, शिक्षकों आदि के साथ समायोजन कर लेता था।
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