स्वप्न –विज्ञान दार्शवनक एिं मनोिैज्ञावनक विश्लेषण

Authors

  • डॉ उषा खंडेलिाल

Abstract

जो यथाथथ नह ीं है, उसे यथाथथ क भाींतत प्रत्यक्ष देखने का नाम' स्वप्न' है। स्वप्न ए कमनोमय अनुभूतत है ,उसका कोई तनतित कारण भ नह,ींक्ोतींकआजतककोईभ वैज्ञातनकतनतितरूपसेयहनहींबतासकाहैतकतकसस्वप्नका क्ाकारणहै?स्वप्नआत्मचेतना क अनुभूतत मात्र है, जो यह प्रमातणत करता है तक ज वात्मा अपना आत्म- तवकास करने मन के महत्व को समझें।इस प्रकार मन का सींबींध, ब्रह्ाींड के रहस्ोीं के साथजोड़ कर उसे व्यापक बनाया जा सकता है।" गायत्र उपासनाया योग – साधनाओ सेना ड़ शोधन तिया होत है, शुद्ध हुई सुषुम्ना नाड़ में मन का प्रभातवत होना ह तदव्य स्वप्न तदखाता है। उस समय तवराट पररसर में हमार चेतना तैरत है, तजससे तदव्य आकृ ततयाीं, ग्रह ,नक्षत्र ,पवथत, नद ,हरे – भरे स्थान तदखाई देते हैं।

फ्रायड,जुंग आतद मनोवैज्ञातनकोीं ने स्वप्न तवश्लेषण तवतभन्न तरह से तकया हैI आचायश श्री राम र्माश ने भ अपन तरह से स्वप्नोीं क व्याख्या क है। उनका कहना है तक तजस प्रकार हमारा स्थूल ज वनअनेक प्रकार के ज्ञान – तवज्ञान से ओत-प्रोत ह,ै उस प्रकार सूक्ष्म जवभ सूक्ष्मशररसींस्थानके रूपमेंअनेकरहस्ोींसेओत-प्रोतहैं।स्वप्नकालक व्याख्याकरतेहुए वेकहतेहैं"स्वप्नकासींबींध कालक समासेपरेहैअतीं तियजगतसेहैअथाथतअनातदकालसेचलेआरहेएवींभूतकालसेलेकरअनींतकालतकचलनेवाले भतवष्यतजसअतींतियचेतनामेंसतन्नतहतहै,मानवयचेतनास्वप्नकालमैंउसकास्पशथकरनेलगत हैI"वेयहभ मानतेहैंतकस्वप्न का सींसार भ स्थूल ज वनके सदृश्य जतटल है अन्तजथगत क अनेक समस्ाएीं इनके माध्यम से सुलझाई जात हैं। स्वप्न में काल का बींधननहींहोता,अतःस्वप्नमें1सेकींडमेंह लींबेदृश्यदेखनासींभव है।

References

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Published

2021-01-30